क्या संसार में सुख है?

वास्तव में संसार में सुख है ही नहीं। संसार नाना प्रकार की अनहोनियों को घटाकर अशान्ति उत्पन्न कर देता है। उसमें अच्छा, बुरा या आशिक पवित्रता रहने पर भी अनेक समय नाना प्रकार की अशान्ति उत्पन्न कर देता है। इसीलिए श्रीमद्भागवात में “तत्तेऽनुकम्पां” श्लोक प्रकाशित किया गया है। श्रीगोलोक धाम इस संसार की जैसी यथेच्छाचारिता नहीं है। स्थान या कालविशेष से जो समस्त असुविधाएँ उपस्थित होती हैं, उन्हें सहन करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है।

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