आचार्य कौन है ?

आचार एवं प्रचार - परायण भगवद्भक्त ही आचार्य हैं। आचार्य निरपेक्ष तथा मुक्त होते हैं। वे स्वयं सम्पूर्णरूप से असत्संग त्याग तथा निरन्तर कृष्णचर्चा का महान् आदर्श दिखलाते हैं। जो निर्भीक तथा निरपेक्षरूप से सभी को असत्संग त्याग की बात कहकर उनका असत्संग छुड़ा सकते हैं, वे ही आचार्य हैं।

यदि प्राण न दिया जाये, तो प्रचार नहीं हो सकता। जो प्राण दे सकते हैं, वे ही प्रचार कर सकते हैं।

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